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होम लोन चुनने से पहले का आकलन कर लें कि रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति और बैंक रेगुलेशन में बदलाव से आपके लोन और ईएमआई भुगतान पर क्या असर पड़ेगा। यह पर्सनल फाइनेंस का एक तय दस्तूर है कि आप अपने मासिक बजट को इस तरह से समायोजित कर लें कि ईएमआई के रूप में हर महीने निकलने वाली भारी नकदी से कोई दिक्कत न हो। इसलिए समझदारी इसी बात में है कि आप होम लोन लेने से पहले अपनी क्षमता और अपने पर्सनल फाइनेंस पर लोन लेने के असर को आंक लें...



रियल एस्टेट के चमक-दमक के दौर में ऊंची महंगाई के बावजूद प्रॉपर्टी खरीदना आपकी शॉपिंग लिस्ट में सबसे ऊपर होता है। रिजर्व बैंक द्वारा व्यवस्था में नकदी पर सख्त नियंत्रण रखने से होम लोन की दरें आगे-पीछे होती रहती हैं। ऐसे माहौल में होम लोन लेना कठिन नहीं होगा, लेकिन यह बड़ा लक्ष्य और सबसे बड़ा वित्तीय निर्णय जरूर हो सकता है। ऐसे समय में 10 से 20 साल के निवेश में लांग टर्म की प्रतिबद्धता की जरूरत होती है। होम लोन लेने के बाद आपको हर महीने ईएमआई देना पड़ता है, जिसमें मूलधन और ब्याज शामिल होते हैं।


आपने हमेशा देखा होगा, जब रिजर्व बैंक दरें बढ़ाता है तो आपका बैंक भी ब्याज दर बढ़ा देता है। इसके अलावा, मान लीजिए कि बैंक आपसे 12.50 फीसदी का सालाना ब्याज ले रहा है, लेकिन वह नए ग्राहकों से वह काफी कम 10.25 से 10.50 फीसदी का ही ब्याज लेता है। इसी तरह एक और पहलू यह है कि दो साल तक ऊंचा ईएमआई चुकाने के बाद भी आपने देखा कि आपका बकाया लोन अब भी ऊंचा बना हुआ है।

ऐसे में पहले से होम लेने वाले कई लोग काफी नाराज दिखते हैं और इन विसंगतियों की वजह से 'ठगा गया' महसूस करते हैं। होम लोन लेने से पहले और होम लोन लेने के बाद आपको कई चीजें करनी पड़ती है। इसलिए होम लोन लेने के बाद आपको अपने होम लोन से जुड़ी मिथक और सच्चाइयां जाननी चाहिए। बैंक से कहा-सुनी से बचने का यही सबसे सुरक्षित तरीका है।

1.  पुराने ग्राहकों को नए ग्राहकों से ज्यादा ब्याज देना पड़ता है

जुलाई, 2010 के पहले बैंक अपने सबसे कर्ज के लिए उपयुक्त आम ग्राहक को पीएलआर (प्राथमिक उधारी दर) पर कर्ज दिया करते थे जो कि कॉरपोरेट ग्राहकों की सब्सिडी वाली दर से बहुत ज्यादा ऊंचा होता था। इसके बाद रिजर्व बैंक ने बेस रेट आधारित व्यवस्था शुरू की जिससे कम पर बैंक किसी को भी कर्ज नहीं दे सकते।

इसके बाद से बैंकों के सभी लोन को उनके बेस दर से जोड़ दिया गया। बैंक अपने फंड की लागत और अन्य कारकों को देखकर बेस रेट तैयार करते हैं। वे कम से कम तिमाही में एक बार अपने बेस रेट की समीक्षा करते हैं और हर बैंक द्वारा लिए गए निर्णय के आधार पर फ्लोटिंग दर घट या बढ़ सकती है। इसलिए हर बैंक की ब्याज दर अलग-अलग होती है।

आपके लिए ब्याज दर आम तौर पर बैंक के बेस रेट और मार्जिन को जोड़कर तैयार किया जाता है, उदाहरण के लिए यदि बेस रेट 10 फीसदी हो और मार्जिन 50 बेसिस प्वाइंट यानी बीपीएस (आधा फीसदी) हो तो बैंक आपसे होम लोन पर 10.50 फीसदी का ब्याज ले सकता है।

बेस रेट बदल सकता है, लेकिन बैंक उस स्प्रेड या मार्जिन में बदलाव नहीं कर सकते जिस पर कि वह मौजूदा यानी पुराने ग्राहक को लोन दे रहे हैं। इसलिए यदि बेस रेट 10 से घटकर 9.75 फीसदी हो जाता है तो पुराने ग्राहकों के लिए ब्याज दर घटकर 10.50 फीसदी से घटकर 10.25 फीसदी हो जाएगी, 50 बीपीएस के स्प्रेड या मार्जिन को देखते हुए। हालांकि, बैंक कम या ज्यादा मार्जिन पर लोन उपलब्ध कर सकते हैं, जैसे कोई बैंक मान लीजिए कि बेस रेट के अलावा  बस 25 बीपीएस और जोड़ता है।

ऐसे में नए ग्राहकों के लिए रेट 10 फीसदी होगा (बेस रेट 9.75 फीसदी के अलावा 25 बीपीएस अतिरिक्त), जबकि पुराने ग्राहकों को 10.25 फीसदी का ही भुगतान करना होगा। हालांकि, नए एवं पुराने ग्राहकों के बीच रेट का अंतर कई बैंक रखते हैं, लेकिन जरूरी नहीं कि सभी बैंक ऐसा करें। वास्तव में यह अलग-अलग बैंकों द्वारा अपनाए गए कीमत तय करने के तरीके पर निर्भर करता है।

2. शुरुआत में आपका बकाया मूलधन बहुत धीमी गति से घटता है

इससे ज्यादा फर्क नहीं पड़ता कि आप ईएमआई कितना कम या ज्यादा दे रहे हैं, शुरुआती दौर में इसका ब्याज घटक काफी ज्यादा होता है क्योंकि ब्याज दर ऊंची होती है और लोन लंबी अवधि के लिए होता है। मान लीजिए कि आपने 20 साल के लिए 40 लाख रुपये का लोन 10 फीसदी ब्याज दर पर लिया है तो आपकी ईएमआई 38,600 रुपये होगी।

दो साल बाद, आपका बकाया मूलधन 38.60 लाख रुपये होगा। इन दो वर्षों में आपने 9.26 लाख रुपये चुकाए हैं, लेकिन आपके मूलधन में कमी सिर्फ 1.40 लाख रुपये की होती है। पहले पांच साल में ईएमआई का सिर्फ 17.6 फीसदी हिस्सा मूलधन चुकाने में जाता है।

इसी तरह पहले 10 और 15 साल में ईएमआई का क्रमश: 23 फीसदी और 31.5 फीसदी हिस्सा मूलधन चुकाने में जाता है। आप यह देखते हैं कि पहले कुछ साल में ब्याज घटक की तुलना में मूलधन में कमी बहुत धीमी गति से होती है। इसलिए समझदारी इसी में होती है कि शुरुआती दौर में ही लोन का भुगतान कर लें, बजाय बाद के वर्षों में करने के।

3. ईएमआई की जगह बैंक लोन की अवधि में बदलाव पर जोर देते हैं

आपने अक्सर देखा होगा कि रिजर्व बैंक ब्याज दरें घटा या बढ़ा देता है, लेकिन इसके बावजूद पूरे लोन के लिए आपकी ईएमआई में कोई बदलाव नहीं आता क्योंकि इसके मूलधन और ब्याज अनुपात को बदल दिया जाता है। बैंक हमेशा इस बात को तरजीह देते हैं कि ईएमआई में बदलाव की जगह लोन की अवधि ही बदल दी जाए। इसकी वजह साफ है, बैंकों को इसमें सुविधा होती है। उन्हें ईएमआई को पुनर्समायोजित करने, ईसीएस के मैंडेट में बदलाव और नए पोस्ट डेटेड चेक लेने की तकलीफ नहीं उठानी पड़ती।

जब दरों में गिरावट आती है, तो अवधि घटाना कर्जदार के लिए फायदेमंद होता है क्योंकि ब्याज की लागत घट जाती है, लेकिन दरें बढऩे पर अवधि समान रखने या उसे बढ़ाने से बैंक को फायदा होता है क्योंकि इससे ग्राहक को ज्यादा ब्याज चुकाना पड़ता है।  उपरोक्त तर्क को अगर आपको उदाहरण से समझना हो तो मान लीजिए तीन साल बाद रेट को संशोधित कर 10 से 9.50 फीसदी कर दिया जाता है।

यदि आपका ईएमआई समान यानी 38,600 रुपये ही रहता है तो लोन की अवधि में 15 महीने की कमी आ जाएगी। आपको बाकी अवधि (189 महीने) के लिए ब्याज के रूप में 35.27 लाख रुपये चुकाने पड़ेंगे। लेकिन यदि आपकी ईएमआई पुनर्समायोजित की जाती है और अवधि समान रहती है, तो आपको बाकी अवधि के लिए 38.52 लाख रुपये का ब्याज चुकाना पड़ेगा। इस प्रकार आपको अवधि समान रहने पर 3.25 लाख रुपये ज्यादा ब्याज चुकाने पड़ते हैं।

4. मूलधन से ज्यादा ब्याज भुगतान

कई कर्जदाताओं को यह आभास नहीं होता कि वे जो मकान लोन पर खरीदने जा रहे हैं, उसकी लागत उनके लिए कीमत से दोगुने से ज्यादा होती है। लोन की अवधि जितनी ही ज्यादा होती है, ब्याज का भुगतान उतना ही ज्यादा करना पड़ता है और इस बात की उतनी ही ज्यादा संभावना होती है कि आप मूलधन से ज्यादा ब्याज का भुगतान करेंगे। यदि ब्याज दर 8 फीसदी है तो आपको 40 लाख रुपये के 20 साल तक के लोन पर 40.30 लाख रुपये का ब्याज चुकाना पड़ता है। यदि आप चाहते हैं कि आपकी लागत बस दोगुना ही रहे तो यदि अवधि 15 साल की है तो ब्याज दर 10.6 फीसदी होना चाहिए और यदि अवधि 10 साल की है तो ब्याज दर 15.9 फीसदी होनी चाहिए।

5. लोन पर निश्चित ब्याज दर वास्तव में निश्चित नहीं होती

आमतौर पर जब आप निश्चित ब्याज दर पर लोन लेते हैं तो उसमें पूरी अवधि के दौरान ब्याज दर निश्चित होनी चाहिए। लेकिन वास्तव में ऐसा होता नहीं। कई बैंक ऐसी शर्त लगाकर रखते हैं जिसमें कहा गया होता है कि दरों में संशोधन किया जाता है। यह शर्त बैंकों को अच्छी नकदी प्रवाह बनाए रखना सुनिश्चित करती है, यदि उनकी लागत में भारी बढ़त हो जाए और यह बदलाव अलग-अलग बैंक अलग-अलग तरीके से करते हैं, जैसे कुछ एक निश्चित अवधि के बाद बदलाव करते हैं तो कुछ ब्याज दरों में भारी बढ़त के बाद।

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रिटायरमेंट प्लानिंग में लालच नहीं संयम से होता है फायदा

किसी भी रिटायरमेंट निधि मे वृद्धि के लिए दो इंजन की जरूरत पड़ती है। आपके द्वारा हर साल की जाने वाली बचत और आपके पोर्टफोलियो पर मिलने वाला रिटर्न। यहां यह सवाल महत्वपूर्ण हो जाता है कि आपके निधि पर किसका असर ज्यादा होता है? रिसर्च से यह पता चलता है कि रिटायरमेंट प्लानिंग में बचत ज्यादा करने पर जोर देना चाहिए और रिटर्न 'संयमित' रहे तो भी काम चल सकता है। कम बचत दर की भरपाई कभी भी ज्यादा पोर्टफोलियो रिटर्न से करने की कोशिश नहीं करनी चाहिए

जब भी हम 'रिटायरमेंट' शब्द सुनते हैं तो हमारी सोच यह होती है कि अभी तो हमारे पास बहुत समय है और इस तरह से दिन, महीने और साल गुजरते जाते हैं। आप अपने बच्चों और परिवार के लिए सब कुछ करते हैं, जीवन की सभी जिम्मेदारियों को पूरा करते हैं, लेकिन अपनी रिटायरमेंट प्लानिंग के बारे में बिल्कुल भूल जाते हैं।

जीवन भर हम कमाते हैं और दूसरों के लिए खर्च करते हैं, लेकिन जब खुद अपनी जरूरत का कठिन समय आता है तो हमारे पास पर्याप्त धन नहीं होता। आप अपने रिटायरमेंट के वर्षों की योजना या लक्ष्य बनाएं या न बनाएं वह तो तय समय पर आना ही है। आप हर साल, महीने, घंटे और हर सेकेंड धीरे-धीरे उसके करीब जा रहे हैं।

इसलिए आपको उसके लिए तैयार हो जाना चाहिए। जितने साल और महीने आप अपने भविष्य के लिए बचत नहीं कर रहे हैं, रिटायरमेंट प्लानिंग के लिए आपके पास समय उतना ही कम होता जा रहा है और आगे गुजरने वाले हर साल पर आपकी बचत की जरूरत उतनी ही बढ़ती जाएगी।

वृद्धि के दो इंजन

समय के गुजरने के साथ ही किसी भी रिटायरमेंट निधि को वृद्धि के लिए दो इंजन की जरूरत पड़ती है। आपके द्वारा हर साल की जाने वाली बचत और आपके पोर्टफोलियो पर मिलने वाला रिटर्न।

यहां यह सवाल महत्वपूर्ण हो जाता है कि आपके निधि पर किसका असर ज्यादा होता है? इसको आप अच्छी तरह से समझ पाएं इसके लिए हमने बचत के गणित की एक रूपरेखा खींची है (चार्ट देखें) जिसमें यह दिखाया गया है कि निवेशक अगर उम्र के चार पड़ाव पर जाकर निवेश शुरू करे तो 60 वर्ष की उम्र में वह कितना निधि तैयार कर सकता है।

मान लेते हैं कि कोई व्यक्ति है जिसका 25 वर्ष की उम्र में 5 लाख रुपए का सालाना वेतन है और उसमें हर साल 3 फीसदी की बढ़त होती है। बदलते बचत दर और बदलते पोर्टफोलियो रिटर्न दर के आधा पर तैयार विश्लेषण से हम देखते हैं कि इस मामले में यह काफी महत्वपूर्ण है कि व्यक्ति बचत की शुरुआत कब से करता है।

चार्ट को देखें तो पहले पंक्ति के दूसरे स्तंभ में जो आधार आंकड़ा दिया गया है उसमें यह माना गया है कि बचत दर सालाना आय का 6 फीसदी है और पोर्टफोलियो पर सालाना रिटर्न 6 फीसदी का मिलता है। अन्य दो स्तंभों में यह दिखता है कि यदि बचत दर बढ़कर 10 फीसदी हो जाए या पोर्टफोलियो रिटर्न बढ़कर 10 फीसदी हो जाए और दूसरे वैरिएबल स्थिर रहें तो नतीजे किस तरह से बदल जाते हैं।

जब कोई निवेशक 25 वर्ष की उम्र में एक निवेश पोर्टफोलियो बनाना शुरू करता है तो बुनियादी दर के आधार पर 60 साल तक के उसे निधि का मूल्य 52.49 लाख रुपए हो जाता है। यदि उसके पोर्टफोलियो का सालाना रिटर्न बढ़कर 10 फीसदी हो जाए और बचत दर 6 फीसदी ही रहे तो 60 वर्ष की उम्र में पोर्टफोलियो का वैल्यू 1.20 करोड़ रुपए की ऊंचाई तक पहुंच जाता है।

दूसरी तरफ, यदि बचत दर बढ़कर सालाना 10 फीसदी का हो और पोर्टफोलियो पर रिटर्न महज 6 फीसदी मिल रहा हो तो 60 वर्ष की उम्र तक निधि की वैल्यू 87.48 लाख की होती है।

निश्चित रूप से यह बेहतर होगा कि 25 वर्ष की उम्र में कोई व्यक्ति आय का 10 फीसदी बचाए और ऐसा पोर्टफोलियो बनाए जिस पर 10 फीसदी का रिटर्न भी हासिल हो। ऐसा अगर कोई व्यक्ति कर पाया तो 60 वर्ष की उम्र तक उसके पास 2 करोड़ रुपए होंगे। लेकिन यह साफ है कि किसी युवा व्यक्ति को अगर अपने निधि की वैल्यू ज्यादा करनी है तो उसके लिए वार्षिक बचत दर से ज्यादा महत्वपूर्ण है पोर्टफोलियो का रिटर्न बढ़ाना।

मान लीजिए किसी निवेशक ने 35 वर्ष की उम्र में बचत शुरू की। 6 फीसदी की बचत दर और 6 फीसदी के सालाना पोर्टफोलियो रिटर्न के हिसाब से 60 वर्ष की उम्र तक उसके पोर्टफोलियो की वैल्यू सिर्फ 31.82 लाख रुपए होगी (यहां यह मानना होगा कि वेेतन में सालाना 3 फीसदी बढ़त के हिसाब से 35 साल की उम्र तक व्यक्ति का सालाना वेतन 6.72 लाख रुपये तक पहुंच जाएगा)।

यदि उसके पोर्टफोलियो पर रिटर्न बढ़कर सालाना 10 फीसदी का हो और बचत दर 6 फीसदी पर ही स्थिर रहे तो 60 वर्ष की उम्र तक उसके पास 55.64 लाख रुपए की निधि होगी।

दूसरी तरफ, यदि उसके पोर्टफोलियो का रिटर्न सालाना 6 फीसदी ही रहता है और बचत दर वह बढ़ाकर 10 फीसदी कर देता है तो उसकी कुल निधि 53.04 लाख ही होगी। इस तरह हम देखते हैं युवा व्यक्ति के लिए बचत दर में बढ़त के मुकाबले पोर्टफोलियो रिटर्न में बढ़त का ज्यादा असर होता है।

बचत दर पोर्टफोलियो रिटर्न से महत्वपूर्ण

निवेशक की उम्र 45 वर्ष होने पर गणित काफी रोचक हो जाता है। इस उम्र तक निवेश शुरू करने वाले व्यक्ति को पोर्टफोलियो रिटर्न 10 फीसदी रखने की जगह बचत दर ज्यादा रखने से फायदा होता है।

यह थोड़ा अटपटा लग सकता है, परंपरागत समझदारी तो यह कहती है कि यदि कोई व्यक्ति रिटायरमेंट के प्लान में बहुत देर करता है तो उसे अंतिम समय में इसकी भरपाई के लिए ऐसा पोर्टफोलियो बनाना चाहिए जिसमें सालाना 10 से 12 फीसदी का अच्छा रिटर्न हासिल हो। लेकिन हमारा रिसर्च कुछ और ही सुझाता है।

इसके मुताबिक ज्यादा उम्र में निवेश शुरू करने वाले को ज्यादा आक्रामक, ऊंचे जोखिम-ऊंचे रिटर्न वाले इक्विटी पोर्टफोलियो की जगह हर साल ज्यादा बचत करने की कोशिश करनी चाहिए। निवेशक जब 50 वर्ष की उम्र से बचत शुरू करता है तो यदि बचत दर को बढ़ाकर 10 फीसदी सालाना कर दिया जाए और पोर्टफोलियो से 10 फीसदी का ऊंचा रिटर्न हासिल हो तो खाते में करीब 3.08 लाख रुपए ज्यादा जुटते हैं।

इससे यह साफ है कि देर से रिटायरमेंट प्लान शुरू करने वाले व्यक्ति को ज्यादा से ज्यादा बचत करनेे की कोशिश करनी चाहिए। मान लीजिए कि एक 25 साल का कोई व्यक्ति सालाना 5 लाख रुपए वेतन के साथ करियर शुरू करता है और अगले 35 साल तक उसके वेतन में सालाना 3 फीसदी की बढ़त होती है।

यदि वह अपनी आय का 10 फीसदी हर साल भविष्य निधि (पीएफ) में जमा करता है और अगर उसके रिटर्न पर शून्य फीसदी का ब्याज मिले तो 60 वर्ष की उम्र तक के उसके पास महज 31.64 रुपए होंगे।

लेकिन यदि उसके पीएफ खाते पर सालाना 6 फीसदी का ब्याज भी मिलता है तो 60 वर्ष की उम्र तक उसके पास 87.48 लाख रुपए की निधि होगी। यहां पोर्टफोलियो का रिटर्न महत्वपूर्ण कारक साबित होता है।

अधिकतम योगदान

अब मान लीजिए कोई 25 वर्षीय व्यक्ति अपने रिटायरमेट तक हर साल अपने वेतन का सिर्फ 2 फीसदी ही बचाता है। यदि उसके पोर्टफोलियो पर शून्य फीसदी का रिटर्न मिले तो उसके एकाउंट में सिर्फ 6.33 लाख रुपए जमा होंगे। लेकिन इन 35 वर्षों में उसे 6 फीसदी का सालाना रिटर्न मिलता है तो भी उसके खाते में महज 17.50 लाख रुपये होंगे।

60 वर्ष की उम्र तक यदि वह चाहता है कि उसके निधि में 87.48 लाख रुपये हों और वह अपनी बचत दर 2 फीसदी ही बनाए रखना चाहता है तो उसे अपने पोर्टफोलियो पर सालाना 13.4 फीसदी का औसत रिटर्न हासिल करना होगा।

दूसरे शब्दों में कहें तो उसके अपर्याप्त योगदान की वजह से उसके पोर्टफोलियो में इक्विटी का भारी हिस्सा शामिल करना होगा। यही नहीं, 35 साल की अवधि तक किसी पोर्टफोलियो में औसत सालाना रिटर्न 13.4 फीसदी हासिल करना भी आसान नहीं है। इस तरह की निधि चाहिए तो 4 फीसदी की बचत दर भी काफी नहीं होगी।

कैसे हो बेहतर तैयारी

रिटायरमेंट के लिए वित्तीय रूप से बेहतर तैयारी के लिए आपको औसत सालाना बचत दर कम से कम 6 फीसदी रखनी होगी। यदि आप 10 फीसदी बचा सकते हैं तो इससे बेहतर और कुछ नहीं हो सकता। जो निवेशक 45 वर्ष से ज्यादा के हो चुके हैं, उनके लिए तो यह और भी जरूरी है।

लक्जरी गाडिय़ों, बढिय़ा खाने, चमचमाते मकान और अहं के इस जमाने में 'संयमित' रिटर्न की बात कुछ अजीब जरूर लगती है, लेकिन विश्लेषण से यह पता चलता है कि कम बचत दर की भरपाई कभी भी ज्यादा पोर्टफोलियो रिटर्न से करने की कोशिश नहीं करनी चाहिए।

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एफडी की सीढ़ी पर चढऩे के बाद मिलेगा बढिय़ा रिटर्न

शेयर बाजार और मुद्रा बाजार में भारी उतार-चढ़ाव से 'जोखिम' शब्द हमेशा जुड़ा रहता है। इसी वजह से बहुत से लोग शेयर बाजारों से दूर हो जाते हैं और बैंक एफडी में पैसा लगाना बेहतर समझते हैं, जो हर समय के लिए सुरक्षित साधन माना जाता है। इन दिनों तो शॉर्ट टर्म (3 से 5 साल) के लिहाज से देखें तो बैंक एफडी में रिटर्न म्यूचुअल फंडों और फिक्स्ड मैच्योरिटी प्लान (एफएमपी) से भी बेहतर मिल रहा है। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि बैंक एफडी में जोखिम नहीं होता। एफडी में भी आप बिल्कुल निश्चित नहीं होते कि जब परिपक्वता अवधि पूरी होने के बाद आप पैसा निकालेंगे तो उसे उसी ब्याज दर पर फिर से निवेश करना होगा या ज्यादा ब्याज दर मिलेगी। हर तरह के फिक्स्ड इनकम प्रोडक्ट के साथ सभी निवेशकों के लिए यह जोखिम होता है, चाहे बैंक जमा हो, बांड या कुछ और

दोबारा निवेश का जोखिम


आमतौर पर एफडी में निवेश करने वाले ज्यादातर निवेशक अच्छे समय का इंतजार करते हैं। वे इस बात का इंतजार करते हैं कि ब्याज दरें शीर्ष पर जाएं और उसके बाद वे पैसा जमा करें। उनका हमेशा यह इरादा होता है कि सबसे ऊंचे ब्याज दर पर अपना ढेर सारा पैसा जमा करें। इसका नतीजा यह होता है कि अंतिम तौर पर उनको रिटर्न कम मिल पाता है।

इसकी वजह यह है कि इंतजार करने की अंतरिम अवधि के दौरान उनका धन बैंकों के बचत खाते में पड़ा रह जाता है, जिस पर ब्याज बहुत कम मिलता है। यहां तक कि यदि उन्हें ऊंचा रिटर्न मिल भी जाता है तो भी इस बात की गारंटी नहीं होती कि वे परिपक्वता पर उस धन को फिर उसी ऊंचे रेट के आधार पर दोबारा निवेश कर पाएंगे।

मान लीजिए कि पांच साल के बाद जमा दरें कम हो जाती हैं, जिसकी ज्यादातर संभावना होती है, तो आपको ब्याज रिटर्न कम मिलेगा। इससे भी खराब बात यह है कि यदि पांच साल की अवधि के दौरान बीच में ब्याज दर बढ़ जाती है तो उसका फायदा आपको नहीं मिलेगा यानी आप बाद में निवेश कर जो ऊंचा ब्याज हासिल कर सकते थे, वह नहीं कर पाएंगे।

निश्चित रूप से यह आपके लिए दुविधा की स्थिति होगी। या तो आपको जुर्माना देते हुए एफडी तोडऩा होगा या उस समय के ब्याज दर से ही संतोष करना होगा, चाहे वह जो भी हो।


ऐसी स्थिति से बचने के लिए हम आपको यह सलाह देना चाहते हैं कि शेयरों की तरह एफडी में भी दीर्घकालिक रणनीति बनाएं। आप अपने शेयर पोर्टफोलियो में सिर्फ एक शेयर तो नहीं रख सकते, इसी तरह डेटा के मामले में भी आपको किसी एक साधन पर निर्भर नहीं होना चाहिए। जोखिम को कम से कम करने के लिए आपको कई तरह के उपलब्ध साधनों और अलग-अलग अवधि में निवेश करना होगा।

आपको इस तरह की सीढ़ी बनानी चाहिए कि हर साल के अंत में परिपक्व होने वाला कोई एक प्रोडक्ट जरूर हो, और परिपक्व होने वाले प्रोडक्ट से निकाली गई राशि को फिर किसी प्रोडक्ट में निवेश किया जाए, यह देखते हुए कि तत्कालीन ब्याज दर की स्थिति क्या है।

आप यह रणनीति कहीं भी अपना सकते हैं, चाहे बैंक डिपॉजिट हो, कंपनी डिपॉजिट, पोस्ट ऑफिस स्कीम, बांड या म्यूचुअल फंडों के फिक्स्ड मैच्योरिटी  प्लान। यह क्रमबद्ध आय सीढ़ी वाली एक तकनीक है जिसमें एक समय सीढ़ी का एक पायदान होता है। आइए देखते हैं कि यह किस तरह से काम करता है।

कैसे बन सकती है निवेश सीढ़ी

मान लिया कि आप किसी पांच साल के एफडी में पांच लाख रुपए की एकमुश्त रकम लगाना चाहते हैं। आप सुनिश्चित नहीं हैं कि अगले वर्षों में ब्याज दर किधर जाएगी। यदि ब्याज दरें बढ़ती हैं तो भी आपका निवेश मौजूदा दर पर ही फंसा रहेगा और आपको ऊंचे ब्याज दर का कोई लाभ नहीं मिलेगा।


दूसरी तरफ, यदि ब्याज दरें घट जाती हैं तो आपको ऊंचे ब्याज दर पर एफडी में पैसा जमा करने से बड़ी आत्मसंतुष्टि होगी। इसलिए आपको पांच साल के लिए एक साधारण सीढ़ी बनानी चाहिए।

इसके लिए सबसे पहले आपको अपने पांच लाख रुपए को एक-एक लाख रुपए के पांच हिस्से में बांटना होगा। इसके बाद पहले खंड को एक साल के जमा में, दूसरे खंड को दो साल के जमा में, तीसरे खंड को तीन साल के जमा में, चौथे को चार साल के जमा में और पांचवें को पांच साल के जमा में निवेश करें।

इस तरह पहली चार सीढ़ी चढ़े बिना आप पांचवें पर नहीं चढ़ सकते। एक साल के बाद एक साल का जमा परिपक्व हो जाएगा और इसको फिर से किसी पांच साल के एफडी में निवेश कर छठा पायदान तैयार किया जा सकता है।

जब दूसरे साल का जमा परिपक्व हो जाए तो उसका पैसा भी निकालकर पांच साल के एफडी में लगाएं जिससे सातवां पायदान तैयार हो यानि सातवें साल में आपके हाथ मेंं पैसा आए। इसी तरह आप पांच साल के एनएसएसी के मामले में भी सामान्य सीढ़ी तैयार कर सकते हैं जिसमें न्यूनतम 100 रुपए का भी निवेश किया जा सकता है। एनएससी में निवेश की कोई अधिकतम सीमा नहीं है।

अपने डेटा पोर्टफोलियो में कर बचत करना चाहते हों तो इसका भी अलग तरीका अपनाया जा सकता है। मान लीजिए कि आपको एक वित्त वर्ष में 60,000 रुपए का एनएससी खरीदना है तो एकमुश्त खरीदने की जगह आपको हर महीने 5,000 रुपए का एनएससी खरीदना चाहिए।

पांच साल के बाद जब पहले महीने का एनएससी परिपक्व हो जाए तो उस राशि को फिर से निवेश कर दें, इसके अगले महीने परिपक्व होने वाले एनएससी के लिए भी यही प्रक्रिया अपनाएं। आप जब तक रिटायर नहीं हो जाते हैं, तब तक ऐसी खरीद जारी रख सकते हैं। जब आप रिटायर होंगे तो आपने जो एनएससी खरीदें हैं वह नियमित रूप से पेंशन की तरह आपको आय देना शुरू करेंगे। एफडी के द्वारा भी इस लक्ष्य की पूर्ति की जा सकती है।

सीढ़ी व्यवस्था का फायदा

आप देखें्रगे कि जब आप सावधि आय वाले साधनों सीढ़ी तैयार करते हैं, तो आपको हमेशा कुछ न कुछ धन मिलता रहता है जो हर साल या आप द्वारा निर्धारित अंतराल पर परिपक्व होने वाले साधन से मिलता है, उदाहरण के लिए तीन महीने या छह महीने भी। इससे आपको किसी अनिश्चित परिस्थिति के लिए एक आपात फंड जैसा मिल जाता है।


हर साल परिपक्वता पर आप जो राशि हासिल करते हैं उसे फिर से निवेश कर आप अपनी सीढ़ी को लंबी करते रह सकते हैं। अपने साधनों की सीढ़ी बनाने से आपको लांग टर्म के लिए निवेश करने की प्रतिबद्धता हासिल होती है और कुछ हद तक तरलता यानी जरूरत पर पैसा मिल सकने की एक तरह की सुविधा भी हासिल होती है।

टर्म डिपॉजिट में आमतौर पर समय से पहले पैसा निकालने पर जुर्माना लगा दिया जाता है, इसलिए यदि परिपक्वता से पहले आप उससे पैसा निकालते हैं और फिर किसी ऊंचे रिटर्न वाले साधन में लगाते हैं तो ले-देकर आपका रिटर्न वही रह जाता है। साथ ही, एनएससी जैसे कुछ साधनों में परिपक्वता से पहले पैसा निकालना काफी महंगा और कठिन साबित हो सकता है।

इसका नुकसान यह हो सकता है कि बढ़ते ब्याज दर के परिदृश्य में सीढ़ी बनाने से शायद आपको उतना अच्छा ब्याज न मिल पाए जितना की पूरी राशि को ऊंचे ब्याज दर पर निवेश करने से होता। लेकिन अगर ब्याज दरें गिरती हैं तो आपकी निधि पर मिलने वाला कुल रिटर्न प्रचलित ब्याज दरों के आधार पर मिलने वाले रिटर्न से ऊंचा होगा, क्योंकि आपके निवेश का कई हिस्सा ऊंचे ब्याज दर के आधार पर भी है।

इसलिए लांग टर्म में रिटर्न का प्रवाह ज्यादा समान और अनुमान लगाने योग्य होगा। आमतौर पर जोखिम जितना ही ज्यादा होता है, रिटर्न उतना ही ऊंचा होता है और चूंकि आपने जोखिम कुछ कम किया है, इसलिए आपको रिटर्न भी थोड़ा कम मिलेगा।

किसके लिए है उपयुक्त     

सीढ़ी बनाने की रणनीति उन रिटायर्ड लोगों के बहुत काम आती है जो अपने दिन-प्रति दिन के खर्चों के लिए ब्याज आय पर निर्भर होते हैं। सीढ़ी बनाने से आपको अपनी जरूरत के मुताबिक पूंजी निकालने की सुविधा मिल जाती है। यह उन लोगोंं के लिए भी कारगर हो सकता है जिनका शॉर्ट टर्म के लिए कोई लक्ष्य है, जैसे कि कोई बड़ी खरीद करनी हो या समय-समय पर जो छुट्टियां बिताने जाना चाहते हों।

लांग टर्म के निवेश की तरह सीढ़ी बनाने की रणनीति में आपको औसत रिटर्न हासिल होगा और इससे आप अपनी रकम को कम ब्याज दर चक्र में ही परिपक्व होने से बचा सकते हैं। एफडी के लिए सीढ़ी बनाने की अवधारणा म्यूचुअल फंडों या शेयरों के एसआईपी निवेश की तरह ही है।

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सिर्फ निवेश को न समझें फाइनेंशियल प्लानिंग

फाइनेंशियल प्लानिंग से यह जानने में मदद मिलती है कि आपको अपने जीवन के वित्तीय लक्ष्यों को पूरा करने के लिए कितने पहलुओं को एक साथ जोडऩा होगा। केवल निवेश आपके उद्देश्यों को पूरा करने में नाकाफी होगा

आमतौर पर देखा गया है कि लोग एक अच्छा म्यूचुअल फंड खरीदने पर कुछ ज्यादा ही ध्यान लगा देते हैं। इसका एक कारण यह भी हो सकता है कि लोगों को शायद पता नहीं है कि एक बेहतरीन म्यूचुअल फंड आखिर होता क्या है। मैं आपको बताता हूं कि आखिर बेहतरीन म्यूचुअल फंड होता क्या है।

बेहतरीन म्यूचुअल फंड वह होता है जो आपकी जरूरतें और वित्तीय लक्ष्य पूरा करे। साथ ही इस बात का ख्याल भी रखे कि आपके पैसों पर ज्यादा जोखिम न हो।

अगर आप अपने रिटायरमेंट के लिए प्लानिंग कर रहे हैं और हर महीने ठीक-ठाक राशि बचा लेते हैं तो आपको 12 से 15 प्रतिशत के चक्रवृद्धि रिटर्न की दरकार होगी। इस लक्ष्य को सिप के माध्यम से म्यूचुअल फंड में निवेश करके हासिल किया जा सकता है।

इस मामले में आप अगर उच्च रेटिंग वाले या कम रेटिंग वाले म्यूचुअल फंड में निवेश करते हैं तो इससे क्या फर्क पड़ता है? मैं यह नहीं कह रहा हूं कि व्यक्ति को अच्छे म्यूचुअल फंड नहीं खरीदने चाहिए पर हमेशा ज्यादा रिटर्न वाले म्यूचुअल फंड की तलाश नहीं करनी चाहिए। निवेशक को हमेशा ऐसे म्यूचुअल फंड की खरीदारी करनी चाहिए जिनसे उसके लक्ष्य पूरे हो सकें।

दूसरी तरफ, लोग अकसर मुझसे निवेश की योजनाओं , टर्म इंश्योरेंस या म्यूचुअल फंड में सिप के माध्यम से दस सालों तक के निवेश के बारे में सवाल पूछते हैं। इसका एक कारण यह भी हो सकता है कि उन्होंने म्यूचुअल फंड के माध्यम से अच्छा पोर्टफोलियो बनाया होगा। मैं ऐसे लोगों को सच में बधाई देना चाहता हूं क्योंकि ऐसा करके वे अन्य बहुत से लोगों से आगे निकल चुके हैं।

पर क्या ऐसा करना पर्याप्त है? क्या एक शुरुआती कदम लेना ही काफी है? इसका जवाब है नहीं। ऐसे लोग नियमित तौर पर निवेश तो करते हैं पर उन्हें इसका मकसद पता नहीं होता है। इसे हम अनियोजित निवेश कह सकते हैं।

अनियोजित निवेश


आइए, समझते हैं कि इसका क्या मतलब है। सुनील ने सिप के माध्यम से म्यूचुअल फंडों में निवेश किया और अब वह खुश हैं कि आखिरकार उन्होंने निवेश शुरू कर दिया है। वह दो सालों तक निवेश करते हैं। इस दौरान बाजार ऊपर भी गया और नीचे भी आया पर उनका निवेश जस का तस बना रहा।

इसके मूल्य में कोई बढ़ोतरी नहीं हुई। ऐसे में वह अपने निवेश की पचास फीसदी रकम की निकासी कर कार खरीद लेते हैं, जिसके बारे में वे कई सालों से सोच रहे थे। आखिरकार बाजार ऊपर का रुख करने लगा और उन्हें यह बात समझ में आ जाती है कि निवेश करने के लिए यही सही वक्त था।

यह बात ज्यादातर लोगों को देर से समझ में आती है। ऐसे में वह सिप फिर से शुरू कर देते हैं और कुछ सालों तक इसे जारी रखते हैं। समय- समय पर वह इससे पैसे भी निकालते रहते हैं। उदाहरण के तौर पर बच्चों की शिक्षा, छुट्टियों के लिए वे इससे निकासी कर लेते हैं।

इस नजरिए में क्या गलत है?

दरअसल निवेश की शुरुआत करना एक अच्छा फैसला था पर सुनील ने सीधे दूसरी सीढ़ी पर कदम रखा। पहले से निर्धारित उनके कोई लक्ष्य नहीं थे और इसीलिए निवेश योजना में भी स्पष्टता नहीं थी। उन्हें इस बात की जानकारी भी नहीं थी कि वित्तीय लक्ष्यों और जोखिम लेने की क्षमता के हिसाब से निवेश को कैसे अलग-अलग भाग में बांंटना है। सुनील की तरह ही बहुत से लोग पहली सीढ़ी को छोड़कर सीधे दूसरी सीढ़ी पर कदम रखते हैं। और नियोजन की पहली सीढ़ी को छोड़ देते हैं।

नियोजन क्या है?

फाइनेंशियल प्लानिंग करना थोड़ा उबाऊ जरूर हो सकता है पर यह फाइनेंशियल प्लानिंग का काफी अहम हिस्सा है। जो व्यक्ति फाइनेंशियल प्लानिंग करने में वक्त बिताता है उसके लिए अपने लक्ष्य हासिल करने की संभावना ज्यादा होती है। तो पहला चरण यह है कि आप प्लानिंग करें। जब आप पहले से प्लानिंग कर लेते हैं तो आपकी दुविधाएं दूर हो जाती हैं और इससे आपके वित्तीय जीवन में स्पष्टता आ जाती है और कई समस्याओं का समाधान निकल जा सकता है।

फाइनेंशियल प्लानिंग से यह जानने में मदद मिलती है कि आपको अपने जीवन के वित्तीय लक्ष्यों को पूरा करने के लिए कितने पहलुओं को एक साथ जोडऩा होगा। ऐसे में अपने लक्ष्यों के बारे में जानकारी हासिल करना पहली योजना है। इससे आपको पता चलता है कि आखिर आप निवेश क्यों कर रहे हैं। उदाहरण के तौर पर आप घर खरीदना चाहते हैं, कार, या फिर रिटायरमेंट के लिए प्लानिंग करना इसका उद्देश्य है।

नियोजित निवेश

अब सुनील को यह पता है कि सुनियोजित निवेश ही सब कुछ है। ऐसेे में अपने वित्तीय लक्ष्यों को पूरा करने में अलग-अलग अनुपात में निवेश करना होगा। वे अपने लक्ष्यों को पहचानते हैं और साथ ही यह भी तय करते हैं कि उन्हें अपने हर लक्ष्य को पूरा करने में कितनी राशि की जरूरत पड़ेगी।

अगर उन्हें 20 साल में अपनी बेटी की शिक्षा के लिए दस लाख रुपये की राशि की जरूरत पड़ेगी तो वह हर महीने 2,000 रुपये की राशि सिप के माध्यम से म्यूचुअल फंड में लंबे समय के लिए निवेश कर सकते हैं। साथ ही पीपीएफ और इक्विटी डाइवर्सिफाइड फंड का सहारा भी ले सकते हैं।

अगर वह ज्यादा जोखिम नहीं लेना चाहते हैं तो बैलेंंस्ड म्यूचुअल फंड का सहारा ले सकते हैं। इसके लिए उन्हें केवल अपनी योजना का पालन करना होगा। कहने का मतलब यह है कि उन्हें केवल प्रतिमाह 2,000 रुपये की नियमित बचत करनी होगी और सालाना प्रदर्शन की समीक्षा करनी होगी। अगर इसका प्रदर्शन अच्छा नहीं रहता है तो वह किसी अच्छे फंड की ओर शिफ्ट कर सकते हैं।

निष्कर्ष

तो यह बात स्पष्ट हो गई कि फाइनेंशियल प्लानिंग का मकसद यह नहीं है कि आप बड़ा रिटर्न हासिल करें। या फिर अपने लिए बेहतरीन इंश्योरेंस या म्यूचुअल फंड की तलाश करें। वास्तव में यह छोटे तत्व हैं, फाइनेंशियल प्लानिंग का केंद्र कुछ और ही है। 

यह एक निजी बात है और पूर्ण रूप से आपकी जरूरत और वित्तीय लक्ष्यों पर निर्भर करती है। इसका मकसद है कि निवेश करने से पहले आपके पास एक पूर्व निर्धारित योजना होनी चाहिए जिससे कि आपके पास जो भी पैसे हों उसका सही इस्तेमाल किया जा सके। बहुत अच्छा या बेहतर रिटर्न कमाना फाइनेंशियल प्लानिंग के लिहाज से अहम नहीं है।


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आपाताकालीन फंड आपके भविष्य की वित्तीय योजनाओं को सुरक्षित रखता है

अपने दैनिक वित्तीय जीवन में किसी अप्रत्याशित घटना की कल्पना करना हमारे लिए काफी मुश्किल होता है। यह आपातकाल किसी भी तरह का हो सकता है।

उदाहरण के तौर पर नौकरी जा सकती है, कोई मेडिकल इमरजेंसी आ सकती है, कोई अप्रत्याशित खर्च सामने आ सकता है या घर या कार से जुड़ा कोई खर्च हो सकता है। इस स्थिति में अगर आप आर्थिक रूप से इन सब परिस्थितियों के लिए तैयार नहीं है तो काफी समस्या हो सकती है। आप इसके बारे में पहले से सोचते नहीं हैं पर इसका सामना आपको ही करना होता है।

पारंपरिक स्थिति

आपने अक्सर लोगों को यह कहते हुए सुना होगा कि मैं तीन साल से कार खरीदने की सोच रहा हूं। इसके लिए मैने नियमित तौर पर बचत भी की पर बीच में कुछ खर्चे आने की वजह से यह योजना पूरी नहीं हो पाई । या फिर पिछले महीने ही बेटी की तबियत खराब हो गई जिसकी वजह से मेरी तीन महीने की सेविंग खत्म होगी।

इस तरह की स्थिति में जरूरत पडऩे पर लोगों को कई बार अपना फिक्स्ड डिपॉजिट (एफडी) तक तुड़वानी पड़ जाती है। कई बार तो म्यूचुअल फंड लिक्विडेट करने की या फिर सिप (सिस्टमेटिक इंवेस्टमेंट प्लान) रोकने तक की नौबत आ जाती है।

प्लानिंग न करने का नतीजा

ज्यादातर लोग किसी चीज की प्लानिंग नहीं करते हैं। वे समय के साथ ही चलते जाते हैं। कुछ लोग किसी भी तरह की प्लानिंग कर लेते हैं। हालांकि वह अपनी प्लानिंग में अप्रत्याशित खर्चों को जगह नहीं देते हैं जिसकी वजह से आगे चलकर उनकी प्लानिंग फेल हो जाती है।

बहुत से लोग को इस पर भरोसा ही नहीं करते हैं। उ न्हें लगता है कि उन्हें तो कभी अप्रत्याशित स्थिति का सामना नहीं करना पड़ेगा। उन्हें लगता है कि वास्तव में इस तरह की परिस्थितियों से उन्हें बहुत कम ही रूबरू होना पड़ेगा।

कितनी होनी चाहिए बचत

ज्यादातर विशेषज्ञों का यही मानना है कि आपके पास आपातकालीन फंड के अलावा तीन से छह महीने का खर्च उठाने की रकम होनी चाहिए। हालांकि यह परिस्थितियों पर निर्भर करता है। उदाहरण के तौर पर आपके बच्चे है या नहीं, इंश्योरेंस कवर कितना है।

आप पर कोई कर्ज या देनदारी है तो इसका ख्याल भी रखना होगा। इसी से यह निर्धारित होगा कि आखिर आपका आपातकालीन फंड कितनी राशि का होना चाहिए। तीन से छह महीने के खर्च के लिए आपके पास बचत होनी चाहिए इसका एक साधारण सा कारण यह है कि अगर अचानक से आपकी आय का जरिया अगर खत्म हो जाए तो आपके पास आपातकाल के लिए फंड मौजूद होना चाहिए।

अगर आपके और आपकी पत्नी, दोनों की नौकरी चली जाए तो भी आपको कई सारे बिल का भुगतान करना होगा। ऐसे में जब तक आपको नई नौकरी नहीं मिलती तब तक के खर्च के लिए आपके पास फंड का इंतजाम जरूर होना चाहिए।

कैसे बनाएं आपातकालीन फंड

अगर आपने अभी तक आपातकालीन फंड नहीं बनाया है या फिर आपको बचत करने में दिक्कत आ रही है तो आप इसकी शुरुआत कम राशि से कर सकते हैं।

आपको समझना होगा कि अगर आप एक महीने के खर्च की राशि के लिए पैसे जमा करेंगे तो इसमें काफी वक्त लगेगा। ठीक उसी तरह तीन से छह महीने की बचत करने में भी काफी वक्त लगेगा। तो निकट भविष्य के लिए अगर छोटे लक्ष्य तय करेंगे तो इन्हें पूरा करने में आसानी होगी। इसके लिए अच्छा यही रहेगा कि आप बैंक के माध्यम से बचत करने की शुरुआत करें।

अगर आपके पास सेविंग अकाउंट नहीं है तो आपको इस काम के लिए सेविंग अकाउंट खुलवा लेना चाहिए। इसका अगला चरण यह है कि आपको इस अकाउंट में नियमित तौर पर बचत करनी चाहिए। यह बचत आप एक सप्ताह, पंद्रह दिन या फिर मासिक आधार पर कर सकते हैं। आपको इसके लिए समय निर्धारित करना होगा। एक बार आपकी बचत शुरू हो जाए तो आपको इस बारे में दोबारा सोचने की जरूरत नहीं पड़ेगी।

कहां रखें अपना आपातकालीन फंड

आपको आपातकालीन फंड की शुरुआत अपने सेविंग अकाउंट से करनी चाहिए। कारण यह है कि इसका इस्तेमाल करना काफी आसान है। यह काफी सुविधाजनक भी है। जैसे-जैसे आपकी बचत बढ़ती जाएगी, आप ऐसे खाते की तलाश करेंगे जहां आपको इस पर अच्छा ब्याज भी मिले। ऐसे में दूसरा विकल्प हो सकता है कि आप रैकरिंग डिपॉजिट में निवेश करें।

यह काफी जरूरी है कि आप अपने आपातकालीन फंड का निवेश ऐसी जगह पर जहां इसके नकद में बदलना आसान हो। आपको इस पैसे का निवेश म्यूचुअल फंड और स्टॉक में नहीं करना चाहिए। संभव है कि ऐसा करने से बाजार में उतार-चढ़ाव के चलते शॉर्ट टर्म में आपको नुकसान उठाना पड़े।

आपातकालीन फंड की प्रमुख वजह

अगर आप आपातकालीन फंड बनाकर चलते हैं तो नौकरी जाने की स्थिति में या फिर किसी अन्य आपातकाल में यह परिवार को सुरक्षा प्रदान करेगा। इससे आपको निवेश के मौके भी मिलेंगे। इससे आपको नुकसान नहीं उठाना पड़ेगा। कहने का मतलब है कि आपको किसी भी तरह के आपातकाल में आपको कम दामों में अपने निवेश नहीं बेचने पड़ेंगे। साथ ही अगर आपके पास कोई आपातकालीन फंड मौजूद है तो किसी भी अप्रत्याशित स्थिति में आपको तनाव नहीं होगा।

लक्ष्य को पूरा करने में मददगार

 आपातकालीन फंड बनाने की प्रमुख वजह यह है कि किसी भी स्थिति में निवेश को छेडऩा न पड़े। कहने का मतलब यह है कि जब तक आप के निवेश लक्ष्य को पूरा कर लें आपको किसी भी अप्रत्याशित स्थिति में इन्हें तोडऩा न पड़े क्योंकि इसके लिए आपके पास डेडिकेटेड फंड मौजूद होंगे। अगर कोई ऐसी स्थिति न भी आए तो भी आप इस फंड का इस्तेमाल अपने वित्तीय लक्ष्यों और खर्च को पूरा करने के लिए कर सकते हैं।


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काम से रिटायर हों जिंदगी से नही

युवाओं के दिमाग मे सबसे आखिरी चीज आती है रिटायरमेंट। अगर आपको लगता है कि रिटायरमेंट में अभी काफी वक्त बाकी है तो इस पर दोबारा सोचना चाहिए

आप रिटायरमेंट को किस नजरिए से देखते हैं? यह कुछ ऐसा है जिसके लिए समय बिताने की जरूरत है। हमारे माता-पिता और दादा-दादी ने भले ही रिटायरमेंट को ज्यादा महत्व न दिया हो पर क्या हमारे लिए ऐसा करना संभव है? क्या आप चाहते हैं कि आपका रिटायरमेंट ठीक वैसा ही हो जैसा आपके माता-पिता का रहा है?

रिटायरमेंट प्लानिंग की तैयारी


हर व्यक्ति के जीवन में उतार चढ़ाव आते हैं। गरीब से अमीर तक कोई इससे बच नहीं सकता है। हम हर दिन बुढ़ापे की ओर बढ़ रहे हैं। हालांकि, हमें यह बात समझ नहीं आती है। हमें ऐसा लगता है कि हम पर तो बुढ़ापा कभी आएगा ही नहीं।

अगर आप युवा हैं तो आपके दिमाग मे सबसे आखिरी चीज आती है रिटायरमेंट। अगर आपको लगता है कि रिटायरमेंट में अभी काफी वक्त बाकी है तो इस मसले पर दोबारा सोचना चाहिए। रिटायरमेंट की तैयारी में कभी भी जल्दी नहीं होती है। अगर आप चाहते हैं कि आप हमेशा ऐसी ही जीवनशैली बनाकर रखें तो आपको रिटायरमेंट की प्लानिंग जल्द से जल्द शुरू करनी चाहिए।

प्री रिटायरमेंट प्लानिंग


रिटायरमेंट प्लानिंग का मतलब है कि आप यह आश्वस्त करें कि जब काम से रिटायर होंगे तो आपके पास पर्याप्त पैसे मौजूद हों। यह आपके लिए जीवन का बेहतरीन वक्त होना चाहिए जिससे आप आराम से जिंदगी बिता सकें। बिना किसी दिक्कत के रिटायरमेंट के बाद अपनी जिंदगी जी सकें। ऐसा हो इसके लिए जरूरी है कि जब आप नौकरी कर रहे हों तो अक्लमंदी से फैसले लें और रिटायरमेंट के लिए प्लानिंग करना शुरू करें।

आपका भविष्य काफी हद तक का उन फैसलों पर निर्भर करता है जो आप मौजूदा समय में ले रहे हैं। सही फैसले आपको अच्छी तरह प्लानिंग करने में मदद करेंगे और साथ ही यह आश्वस्त कराएंगे कि आप रिटायरमेंट के बाद भी मुस्कुराते हुए जीवन बिता सकें।

आप वित्तीय रूप से स्वतंत्र रहें, इसके लिए जरूरी है कि आप जल्द से जल्द इस बारे में फैसला लें। जो निवेशक सचेत रहते हैं वे केवल बचत ही नहीं करते बल्कि नियमित रूप से निवेश भी करते हैं। मकसद होता है कि जल्द से जल्द निवेश करके कंपाउंडिंग से फायदा उठाया जा सके। मान लीजिए कि आप 35 साल के हैं और आपकी सालाना आय तीन लाख रुपये हैं।

साथ ही आपके वेतन में सालाना पांच फीसदी की बढ़ोतरी होती है। फर्ज कीजिए कि आप 25 साल बाद रिटायर होने की तैयारी कर रहे हैं। तो इस तरह की परिस्थितियों में आपको रिटायरमेंट के बाद मौजूदा सालाना आय की 60 फीसदी ज्यादा आय की जरूरत होगी। ऐसे में रिटायरमेंट के बाद सालाना छह लाख रुपये की जरूरत पड़ेगी।

इस लक्ष्य को पूरा करने के लिए आपको 75 लाख रुपये का कॉरपस बनाना होगा। इस पर आपको बीस साल तक के लिए सालाना पांच फीसदी का रिटर्न मान कर चलना होगा। इस लक्ष्य को पूरा करने के लिए आपको हर महीने सात फीसदी के रिटर्न के साथ प्रति माह 9,000 रुपये का निवेश करना होगा वो भी 25 सालों के लिए। इसे सरल बनाए रखने के लिए टैक्स और मुद्रास्फीति को नहीं लिया गया है।

नियमित तौर पर बचत करके निवेश करने से रिटायरमेंट के समय काफी फर्क पड़ता है। लंबे समय तक नियमित तौर पर निवेश करने से आपके लिए रिटायरमेंट का फंड तैयार हो जाता है और जोखिम कम से कम रहता है। इससे आप रिटायरमेंट के बाद अपनी पुरानी जीवनशैली बनाए रख सकते हैं साथ ही बिना किसी चिंता के अपने सारे शौक पूरे कर सकते हैं।

रिटायरमेंट के बाद का अनुभव


रिटायरमेंट को प्राथमिकता देना अनिवार्य है। ऐसा न करने की स्थिति में व्यक्ति को अपने बच्चों पर आश्रित रहना पड़ता है। आम तौर पर लोग इस बात को समझ नहीं पाते हैं। रिटायरमेंट का संबंध केवल अंकों से नहीं है बल्कि इससे काफी मानसिक तनाव भी जुड़ा हुआ है। एक समय के बाद व्यक्ति का शरीर उसे ज्यादा काम करने की इजाजत नहीं देता है।

बहुत से लोग ऐसे हैं जिनकी मृत्यु रिटायरमेंट के पहले साल में ही हो जाती है। इसका सबसे बड़ा और प्रमुख कारण है मानसिक तनाव। व्यक्ति के लगता है कि अब वह किसी काम का नहीं रहा। जीवन भर उसे घर के किसी कोने में खाली बैठना होगा। यह अनुभव अपने आप में ही काफी भयावह है। इस तरह के अनुभव उम्र बढऩे के साथ आम हो जाते हैं जैसे:
* - पहचानने की क्षमता घटना
* - बीमारी का खतरा बढऩा
* - व्यक्ति का उग्र होना
* - प्रदर्शन कम होना
मानसिक रूप से तैयार रहें


रिटायरमेंट को लेकर आपका नजरिया क्या है? यह सवाल आपको खुद से पूछना चाहिए। यह अंत है या शुरुआत या दोनों?

पारिवारिक बदलाव
* - पारिवारिक जीवन में कैसे बदलाव आएंगे
* - आप अपने काम साथ में करेंगे या अकेले
* - आप अपने खाली समय को किस तरह सीमा में बांधेंगे
* - आप काम काज का किस तरह बंटवारा करेंगे
* - आप अपनी जरूरतों के अलावा क्या दूसरे की जरूरतें भी पूरी कर पा रहे हैं

सामाजिक बदलाव के लिए तैयार रहें
* - आप किन लोगों के संपर्क में रहेंगे।
* - आपको किन लोगों से सहयोग मिलेगा।
* - आप किसे सहयोग देंगे।
* - आप अपने दोस्तों से मिलने की योजना कैसे बनाएंगे
* - आप पुराने कार्यस्थल सहयोगियों और दोस्तों से कैसे मिलेंगे
सक्रिय रहने के कुछ तरीके
* - शारीरिक गतिविधि करें
* - दोस्तों और नाती-पोतों से मिलें
* - छुट्टी और सामाजिक कामों में वक्त बिताएं
* - अपनी प्रतिभा का इस्तेमाल करें
* - एनजीओ, टीचिंग, मैरिज ब्यूरो जैसे कोर्स ज्वाइन करें

एस्टेट प्लानिंग और रिटायरमेंट प्लानिंग

एस्टेट प्लानिंग का मतलब होता है संपत्ति का बंटवारा है। रिटायरमेंट के वक्त आपके पास घर, फ्लैट, जमीन, गहने और प्रोविडेंट फंड, ग्रेच्युटी, फिक्स्ड डिपॉजिट जैसी नकद संपत्तियां होती है। रिटायरमेंट से पहले आपको अपने सभी बकाया का भुगतान करना होता है।

आपको इस संबंध में सबसे चर्चा करनी पड़ती है कि किस तरह से आप अपनी इन संपत्तियों को बेचकर इसका बंटवारा अपने कानूनी दावेदारों में करेंगे। हालांकि अवयस्क को नामांकित न करें।


कहने का मतलब यह है कि आपको काम से रिटायर होना चाहिए न कि जिंदगी से ।


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